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सितंबर, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

।।।सांझी माता ।।

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  । (,पितृपक्ष में मनाती है कुवांरी कन्या )  श्रीमती उषा चतुर्वेदी सांझी माता का पर्व भाद्रपद की पूर्णिमा से अश्विन मास की अमावस्या तक होता है यह पर्व विशेषकर कुंवारी कन्याओं का होता है यह पूरे पितृपक्ष के 16 दिनों तक चल.ता है सांझी माता का पर्व विशेषकर ब्रज क्षेत्र राजस्थान बुंदेलखंड गुजरात मालवा निमाड़ मैं मनाया जाता है। सांझी माता को ब्रज क्षेत्र में चंदा तरैया कहते हैं ब्रज क्षेत्र के( भदावर) आगरा मथुरा बटेश्वर तथा आगरा जिले के बाह तहसील के गांव में ब्रज भाषा बोलने के कारण ही चंदा तरैयां कहलाता है। कुंवारी कन्याएं 16 दिनों तक घर के बाहर दरवाजे के पास वाली दीवार पर अथवा घर के अंदर आंगन की दीवाल पर गोबर से विभिन्न आकृतियां बनाती है। 16 दिन अलग-अलग आकृति बनाई जाती है लेकिन सूरज देवता चंद्रमा देवता तथा 7  तारे आवश्यक रूप से रोज बनाए जाते: कुंवारी कन्या है पहले घर के दरवाजे के पास वाली दीवार को चूने से पोत कर पवित्र करती है। उसके बाद उसे गाय के गोबर से लीपती है। उतना ही स्थान लीपती है जितने स्थान पर सांझी माता एवं अन्य चीजें बनाती हैं। जिस स्थान को लिखती है ऊपर एक कोने में सूरज देवता तथा

*श्राद्ध क्या है*

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  भाद्रपद शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से सोलह दिवसीय श्राद्ध प्रारंभ होते हैं,  लिहाजा 20 सितंबर से श्राद्ध की शुरुआत हो जाएगी और आश्विन महीने की अमावस्या को यानि 6 अक्टूबर, दिन बुधवार को समाप्त होंगे। श्राद्ध को महालय या पितृपक्ष के नाम से भी जाना जाता है। आचार्य इंदु प्रकाश के मुताबिक, श्राद्ध शब्द श्रद्धा से बना है, जिसका मतलब है पितरों के प्रति श्रद्धा भाव पद्धति हमारे भीतर प्रवाहित रक्त में हमारे पितरों के अंश हैं, जिसके कारण हम उनके ऋणी होते हैं और यही ऋण उतारने के लिए श्राद्ध कर्म किये जाते हैं। आप दूसरे तरीके से भी इस बात को समझ सकते हैं। पिता के जिस शुक्राणु के साथ जीव माता के गर्भ में जाता है, उसमें 84 अंश होते हैं, जिनमें से 28 अंश तो शुक्रधारी पुरुष के खुद के भोजनादि से उपार्जित होते हैं और 56 अंश पूर्व पुरुषों के रहते हैं। उनमें से भी 21 उसके पिता के, 15 अंश पितामह के, 10 अंश प्रपितामह के, 6 अंश चतुर्थ पुरुष के, 3 पंचम पुरुष के और एक षष्ठ पुरुष के होते हैं। इस तरह सात पीढ़ियों तक वंश के सभी पूर्वज़ों के रक्त की एकता रहती है, लिहाजा श्राद्ध या पिंण्डदान मुख्यतः तीन पीढ़ियों तक क

व्यक्तित्व मेरे पिता का

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बहुमुखी व्यक्तित्व के भंडार  हो तुम,   साहित्य के श्रेष्ठतम  श्रृंगार हो तुम , तुम जो हो, हम थाह तक पाए नहीं , क्या नहीं हो , यह भी समझ पाये नहीं ।। आपका जिस क्षेत्र में आगमन हुआ , झांकना भी उस क्षेत्र में  बांकपन हुआ व्यक्ति क्या, अपरिमित, शक्ति के आगार हो तुम बहुमुखी व्यक्तित्व के भंडार हो तुम।। जो सिखाया था तुमने सबको , वह   सभी के आदर्श गुरु हो तुम।। हम सबको जो सिखाये थे जीवनोपयोगी नीति, सूक्ति परक श्लोक, छोटे  छोटे वैदिक मंत्र हम सब की खुशियों के , आज वही बने हैं सिद्धि- यंत्र इसीलिए बस इसीलिए.... इतना ही जाना है , मेरे  लिए तो सर्वश्रेष्ठ , कोई  और हो नही हो सकता , बसतुम, बस तुम बस तुम ही हो , और रहोगे श्रेष्ठ,  मेरे पापा तुम रहते हो मेरे दिल मे हर उपलब्धि पर याद बहुत आते हो , अपने ज्ञान ध्यान , औ वैदिक संस्कारों से। हम छः भाई बहनों को , श्रेष्ठ संस्कारित कर, ऊँचा व्यक्तित्व बनाने वाले बस तुम ,बस तुम बस तुम ही हो....... अब ईश्वर अवसर है वह लाया जिसका रहता था तुमको , बेसब्री से इन्तज़ार जब, तुम्हारे सब  बच्चे, और हम सबके  बच्चे भी , उत्कृष्टता प्रमाणित करते हैं सब  यादें समर्पित  क

मेरी दादी

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वो कौन सी डोर है  जो मुझे उनसे बांधती है जिन्हें मैंने कभी देखा नहीं सिवाए एक तस्वीर के जिसमें वो गोद में अपने नन्हे शिशु को लिए हैं मेरे पास हैं उनकी निशानी दो कुछ-कुछ टूटी हुई बिंदियां जिन पर लिखा है सती और जो सजती होंगी कभी उनके माथे पर और निखारती होंगी उनका सती सा रूप जब इन्हें हाथ में लेती हूं तो उनका होना महसूस करती हूं एक पिटारा भी है मेरे पास जिसमें शायद कभी वो रखती होंगी अपने सुहाग का सामान आज सजती हैं उसमें मेरी चूड़ियां और जब रखती हूं उसे अपनी गोद में तो महसूस करती हूं एक आशीर्वाद से भरा हाथ और दो नेह से भरे नयन --  

तर्पण की हर बूँद ....

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  पापा हथेली में जल लेकर आपका ध्‍यान करती हूँ तर्पण की हर बूँद का मैं मान करती हूँ, कुछ बूँदे पलकों पे आकर ठहर जाती हैं जब तो आपका कहा कानों में गूँजता है, बहादुर बच्‍चों की आँखों में आँसू नहीं होते उनकी आँखों में तो बस चमक होती है जीत की, उम्‍मीद की, विश्‍वास की एक हौसला होता है उनके चेहरे पे और मैं मुस्‍करा पड़ती थी! ... पलकों पे ठहरी बूँदे जाने-अंजाने कितना कुछ कह गईं, आपका दिया मेरे पास हौसला भी है उम्‍मीद भी है और विश्‍वास भी पर आपकी कमी कौन पूरी कर सकता है, तो इस तर्पण की हथेली में गंगा जल के साथ छलका है जो अश्रु जल नयनों का वो स्‍नेह है आपकी अनमोल यादों का, जिसे मैने अपने सिर-माथे लिया है और आपको अर्पित ही नहीं समर्पित भी किया है अंजुरी का जल बूँद-बूँद स्‍नेह मिश्रित पूरी निष्‍ठा से इस पितृपक्ष में!!!

स्त्री रचनाशीलता - मेरी दृष्टि

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                                                                             कम से कम ५०० शब्दों को मान्य किया जाएगा    हिंदी साहित्य की दुनिया में  महिलाओं की उपस्थिति को देखते हुए नारी अभिव्यक्ति के  सामर्थ्य को आरंभ चैरिटेबल संस्था ने एक विशिष्ट स्थान देने का विचार किया है  ... सुभद्रा कुमारी चौहान, महादेवी वर्मा, सरोजिनी नायडू, अमृता प्रीतम, मन्नू भंडारी आदि जैसी कई लेखिकाओं ने अपने समय को अभिव्यक्ति दी और उनके सशक्त लेखन का योगदान हिन्दी साहित्य को प्राप्त हुआ। उन रचनाकारों में से किसी एक का चयन कर, जिसकी लेखनी से आप प्रभावित हों -  उसे लेकर आप अपनी दृष्टि की व्याख्या करें ।  आर्थिक और रचनात्मक आधार पर प्रकाशित होने वाला यह  साझा संकलन होगा ।  आप  यदि इससे सहमत हैं तो समस्त जानकारी हेतु व्हाट्सएप के इस नम्बर पर संपर्क करें   7389422800 

पितृपक्ष

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  पितृपक्ष या पितरपख, १६ दिन की वह अवधि है, जिसमें हिन्दू लोग अपने पितरों को श्रद्धापूर्वक स्मरण करते हैं और उनके लिये पिण्डदान करते हैं ।    पितरों का स्मरण और उनके लिए श्रद्धा का दीया जलाना उन बुजुर्गों की यादों से, उनकी सीख से जोड़ता है, एक परम्परा की वसीयत बच्चों के नाम देता है ।  माना जाता है कि पितृपक्ष में हमारे अपनों की आत्मा हमारा सान्निध्य पाने के लिए हमारे पास होती है और हमारी भूलों को क्षमा करके आशीर्वाद देती है । हमारी श्रद्धा भावना के तर्पण का यह पक्ष होता है ।  माँ, पिता,दादा,दादी,नाना,नानी ... अपने से जुड़े लोगों की आत्मा की शांति और मुक्ति हेतु अपने उद्गार-पुष्पों का उन सबकी स्मृति की गंगा धारा में अर्पण कीजिये । 20 सितम्बर को पितरों को भावनाओं का अर्पण हो, इसके लिए 20 से पहले अपनी रचना भेजें  aarambhanushree576@gmail.com rasprabha@gmail.com   पर और ब्लॉग  https://aarambhanushree.blogspot.com/ के मंच को त्रिवेणी बना लें 

हिंदी की बिंदी

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  मैं हिंदी की अनुपम बिंदी हूँ, मातृ भूमि के माथे की संगी हूँ। हैँ मेरी संतान अनेक। उनमें भेद नहीं मैं रखती हूँ                     मैं हिंदी की बिंदी हूँ..... स्वर, व्यंजन हैँ मेरे अंग, जिनसे सजता मेरा रंग। हिंदु, मुस्लिम, सिख, ईसाई, मैं सबके दिल में बसती हूँ।।                   मैं हिंदी की बिंदी हूँ....... देश में जितनी बोली हैँ, वे सब मेरी हमजोली हैँ। सबको गौरव दिलवाती हूँ, जीवन में सम्मान दिलाती हूँ।।                     मैं हिंदी की बिंदी हूँ..... मैं सिंधु की जलधारा हूँ, लाई अनेक सह धारा हूँ। पूरब- पश्चिम, उत्तर- दक्षिण, सबके लिए मैं सेतु हूँ।।                      मैं हिंदी की बिंदी हूँ.... भाषा कोई नहीं कमतर, पर मातृभाषा रहे उच्चतर। गोरी विमाता करती राज, फिर भी पहचान रखती हूँ।।                    मैं हिंदी की बिंदी हूँ...... हिंदी साधन और साध्य है, हिंदी ही हमारी आराध्य है। हिंदी आदि और अन्त है, मैं ही सबकी दिगंत हूँ।।                      मैं हिंदी की बिंदी हूँ... कमल चंद्रा भोपाल

विश्व पटल पर हिन्दी का परचम लहराया

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  संप्रभूभाषा हिन्दी भारत की मिट्टी में उपजी किसी की मोहताज नहीं है। इसकी अपनी प्राणवायु,प्राणशक्ति व उदारभाव होने के कारण ये शब्दसंपदा का अनूठा उपहार हैं।130 करोड़ की आबादी वाले भारत देश में करीब 44% से ज्यादा लोगों द्वारा बोली जाने वाली राष्ट्र भाषा हिन्दी को दुनिया में बोलने वालों का प्रतिशत 18.5% हैं।दुनिया में सबसे अधिक बोली जाने वाली हिन्दी भाषा विश्व की पांच भाषाओं में से एक हैं। भूतपूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी ने 2006 में दस जनवरी को विश्व हिन्दी दिवस की घोषणा की जाने के साथ ही विदेशों में भारतीय दूतावास इस दिवस पर विभिन्न विषयों पर हिन्दी में कार्यक्रम आयोजित करते हुये विशेष आयोजन करते हैं। अंतर्राष्ट्रीय भाषा के रूप में स्थापित करने के उद्देश्य से प्रचार-प्रसार किया जा रहा हैं ।इसी परिप्रेक्ष्य में नागपुर में प्रथम विश्व हिन्दी दिवस 10 जनवरी,1975 में  मनाया गया जिसमें तीस देशों के 122 प्रतिनिधि शामिल हुये थे।और नार्वे में पहला विश्व हिन्दी दिवस भारतीय दूतावास ने मनाया था और दूसरा व तीसरा भारतीय नार्वे सूचना एवं सांस्कृतिक फोरम के तत्वावधान में लेखक सुरेशचन्द्र शुक्ल जी क

हिंदी का कमाल

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  हिंदी सिर्फ भाषा नहीं हमारी पहचान है  हिंद देश की भाषा है,यह भारत की शान है  मां भारती के माथे की बिंदी है यह  अजी हमारी मातृ भाषा है, हिंदी है यह  बिंदी बिन जैसे सौंदर्य अधूरा लगता है  हिंदी बिन अपना देश प्रेम अधूरा लगता है  हिंदी को वैज्ञानिक भाषा कहा जाता है  उसका लिखना और पढ़ना एक जैसा होता है |  यह जितनी लचीली भाषा है   उतनी ही मीठी और रसीली भाषा है |  दूसरी भाषा के शब्दों को स्वीकारती है यह   Ticket को टिकट ही पुकारती है  यह रेलगाड़ी में अंग्रेजी के संग हिंदी बैठती है  दूसरी भाषा के शब्दों संग फिट हो बैठती है   Rail अंग्रेजी का और गाड़ी हिंदी का  दोनों को मिला रेलगाड़ी बना बैठती है |  प्रेम को अलग-अलग ढंग से पुकारती है  कभी स्नेह कभी वात्सल्य और कभी प्यार  तो कभी ममता बनकर बच्चे को दुलारती है,|  हिंदी में भाव की अभिव्यक्ति का जवाब नहीं  इसलिए इस भाषा के भाव का जवाब नहीं  इसके एक एक शब्द में जो गहराई है  क्या किसी ने उसकी थाह कभी पाई है?  मां बाप के प्रेम को ममता और वात्सल्य का नाम देती है |  कम शब्दों में प्रेम का पैगाम देती है |  कुछ शब्दों की हिंदी जब मुश्किल हुई  तो विदेशी श

"हमारा अभिमान बने हिंदी"

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अभिनय नही, नहीं हमारा अभियान बने हिंदी अभियान ही नहीं हमारा ,अभिमान बने हिंदी  अभिमान है यह देश का,सिरमौर इस परिवेश का मातृभाषा ही नहीं हमारी , पहचान बने हिंदी।। मां भारती के वैभव का गुण गाने बने हिंदी प्रत्येक भारतवासी का दिन मान  बने हिंदी सीखें  कितनी हीभाषाएं,ना भूलें निज मातृभाषा जाएं यदि विदेश भी ,तो  सम्मान बने हिंदी हर भारतवासी का ,प्रतिमान बने हिंदी ।। नदी सहज जब बहती है तब ही कल कल वह करती है , यदि मोड़ दिया रूख उसका, तो वही प्रलय भी बनती है , मत छोड़ो अपनी भाषा को ना खोने दो पहचान इसे सिर झुकता नहीं किसी का भी निज भाषा के गुणगान से परिचय का सूत्र यही है मित्रता की परिभाषा भी यह है यह वागेश्वरी का वरद हस्त ऋषि मुनियों का आशीष यही है हिंदू की जीवन रेखा यह सब ग्रंथों की लेखा है यह कंठो से निकले हर ,स्वर का  प्रतिमान बने हिंदी हर भारतवासी का स्वाभिमान  बने हिंदी हमारा अभियान बने हिंदी हमारा अभिमान बने हिंदी।।      !!! साधना मिश्रा !!!  

चमके भारत माँ का भाल

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  हिन्दी दिवस पर आज, मिल करें तनिक विचार क्यों? हिन्दी में आज हम, नहीं करें व्यवहार।। अंग्रेजी के पीछें भागें, हिन्दी बगल में दाबे। नहीं बनें तो बगलें झाँकें, ठाड़े सबके आगे।। हिन्दी अपनी जननी जैसी, मातृभाषा कहलाये। न होए अपमान कहीं भी, न आये बहकाये।। कामकाज हो सब हिन्दी में, यही बने अब रीत। हिन्दी बने राष्ट्र की भाषा, नये गढ़े नित गीत।। बनें सिनेमा हिन्दी में जो, विख्यात होत परदेश। फिर क्यों छोड़े अपनी हिन्दी, हम अपने ही स्वदेश।। हिन्दी के उत्थान में नित बढ़ें कदम अब शान से। साहित्य बने दर्पण सा, हिन्दी रहे मैदान में।। विश्व विजेता रहे सदा ही, अपनी प्यारी हिन्दी। करें जतन हर कोई, बोलें सबसें हिन्दी।। हिन्दी की बिंदी से चमके, भारत माँ का भाल। नहीं सहें अपमान कहीं भी, रहे सदा ही यह भान।। ******************* श्रीमती श्यामा देवी गुप्ता दर्शना साहित्यकार ( हिन्दी लेखिका संघ भोपाल मध्यप्रदेश) सांईकृपा 41  गोमती कालोनी नेहरु नगर भोपाल मध्यप्रदेश पिन-462003

जयतु हिंदी भाषा

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  यशोधरा भटनागर शहर-देवास शिक्षा- बी. ए.ऑनर्स हिंदी एम. ए हिंदी.,बी.एड विधा-लघुकथा, कहानी,कविता प्रकाशन- 1.लघुकथा संग्रह-एल्बम 2.कविता संग्रह-तरंगिणी 3.कविता संग्रह-रणवीर उपलब्धियांँ - *हिंदी विकास मंच द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित रचनात्मक लेखन में द्वितीय पुरस्कार प्राप्त *विद्यार्थी विकास मंच समिति, उज्जैन द्वारा राष्ट्रीय शिक्षक सम्मान। *ग्लोबल इंटरनेशनल स्कूल (आबूधाबी)में शिक्षण तकनीक पर कार्यशाला आयोजन पर प्रशंसा पत्र *विश्व हिंदी लेखिका मंच द्वारा महादेवी वर्मा  मेमोरियल अवार्ड। *समाज्ञा एवं हिंदी शिक्षण द्वारा हिंदी के प्रचार-प्रसार में योगदान हेतु सम्मानित। *विश्व हिंदी लेखिका मंच द्वारा श्रेष्ठ कवयित्री सम्मान। ईमेल- yashodharabhatnagar@ gmail.co m माटी से जुड़ी  घुट्टी में मिली मातृ और परिवेश की जड़ों और तनों की बचपन और यौवन की  मातृभाषा! हिंदी भाषा! विरासत और इतिहास की रिवाज और परंपरा की  संस्कृति और संस्कार की धर्म और विचारों की  हिंदी भाषा!  हिंदी भाषा!  रिश्तो और नातों की  दादी और नानी की  चाची और मामी की  बुआ और मौसी की  हिंदी भाषा! हिंदी भाषा!  मां की ममता की  मां की

*दोहे*

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  1-हिंदी हो सब की भाष्य,  यही हमारी आस, एक दिन ऐसा आएगा, पूरा रखें विश्वास, ।। 2-भाषाओं के नाम पर बटे हुए हैं प्रदेश निज भाषा सम्मान हो श्रेष्ठ हो वही देश ,।। 3-हिंदी भाष्य माँ समान करो सदा सम्मान, अन्य भाषाएं भी सदा रखतीं अपना मान, ।। 4-अपनी भाष्य हिंदी पर करेंगें हम गुमान, विश्व पटल पर छा रही बनकर स्वाभिमान,।। 5-भारत की भाष्य हिंदी जिसमें हो व्यवहार जनमानस से मन मिले प्राप्त हो सदाचार ,।।  *विजया रायकवार  *  vijayaraikwar@gmail.com

हिंदी

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हिन्दी मेरे दर्द,मेरी खामोशी,मेरी खुशियों की, एक सहज भाषा है, जिसे तोतली ज़ुबान के समय से मैंने सुना, फिर बोलना सीखा... "प्रथम रश्मि का आना रंगिणि" "शरचाप शरासन साध मुझे ..." "कोशिश करनेवालों की ..." जैसी रचनाओं में मैंने उसे गर्व से दोहराया । पंडित नरेंद्र शर्मा जी के गीतों में सुनकर गौरवान्वित हुई  "ज्योति कलश छलके ..." अपनी माँ सरस्वती प्रसाद की पंक्तियों में अस्तित्व पाया, "रास्ते थे तिमिरमय, नहीं सूझता था हाथ भी, रौशनी तो दूर थी,कोई था न पथ में साथ भी, अब मशालें क्यों जलीं, जब शेष हो गई रात है !" दूसरी भाषाओं  का अर्थ भी अपनी ही भाषा में सहजता से डूबकर समझ पाई हूं। -  अपने देश का नाम,उसकी मिट्टी,उसकी नदियाँ, उसके पर्वत,उसकी भाषा ... ज़िन्दगी है, बाकी सबकुछ - कुछ और सीखने,जानने का मार्ग है, रक्त,पानी,नमक का संबंध तो हिन्दी से ही है  । रश्मि प्रभा इसी के साथ आज का शुभारंभ करती हूँ, आरंभ के मंच से शंखनाद करती हूँ -  

बधाई

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शिक्षक दिवस प्रतियोगिता -गुरु ब्रह्मा, गुरु विष्णु" के परिणाम घोषित

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" शिक्षक दिवस प्रतियोगिता -गुरु ब्रह्मा, गुरु विष्णु" के परिणाम घोषित"  आरंभ चैरिटेबल फाउंडेशन के तत्वावधान में नवाचार ने एक और आरंभ किया ब्लॉग की दुनिया में प्रवेश करके।  उद्देश्य था 2021 के शिक्षक दिवस पर जीवन के गुरुओं को सम्मानित करना और यह सम्मान एक शिष्य ही समझ सकता है,दे सकता है । आरंभ ने शिष्यों को एक मंच दिया, गुरु ब्रह्म" विषय पर लेखन प्रतियोगिता के माध्यम से ।  साहित्यकारों सहित विद्यार्थियों ने इसमें भाग लिया । ऋता शेखर 'मधु' बंगलुरु। बबीता गुप्ता,बिलासपुर, छत्तीसगढ़। स्नेह स्मिता 'मीनू' ,गाजियाबाद। सविता अग्रवाल 'सवि' कैनेडा। उषा भटेले, भोपाल । मीनाक्षी छाजेड़,कोलकाता। डॉ मंजुला पांडेय, नैनीताल। रश्मि रंजन, गाजियाबाद। शर्मिष्ठा गुप्ता, औरैया, यूपी साधना वैद, आगरा। निखिता पाण्डेय कोलकाता, पश्चिम बंगाल। डॉ. अरविन्द प्रेमचंद जैन, भोपाल। आरोही व्यास, इंदौर। माधुरी मिश्रा, फ़रीदाबाद। देवेंद्रराज सुथार जालोर, राजस्थान। आशीष जैन “देवल”, जबलपुर। शुभम सक्सेना, भोपाल आदि देश- विदेश से लगभग 30 प्रतिभागियों ने भाग लिया।  आरंभ सबको बधाई देता है

हिन्दी दिवस

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  १४ सितम्बर, "हिन्दी दिवस" है ।  हिन्दी एक ऐसी भाषा है, जो हर प्रान्त को जोड़ती है । इसे देखते हुए हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने का निर्णय लिया गया और इसी निर्णय के महत्व को प्रतिपादित करने तथा हिन्दी को हर क्षेत्र में प्रसारित करने के लिये  पूरे भारत में १४ सितम्बर को इसे विशेष दिवस के रूप में मनाया जाता है । इस राष्ट्र गौरव को हम भी मनाएं और रचनाओं के माध्यम से हिन्दी को प्रतिष्ठित करें ।  ११ सितम्बर तक आप अपनी रचनाएँ काव्य,कहानी,संस्मरण,हाइकु,लघु कथा विधा में भेजें ताकि १४ सितम्बर को हम एक मंच पर उपस्थित हो सकें, कहें गर्व से -  "हिन्दी हैं हम वतन हैहिन्दोस्तां हमारा।"  इस माध्यम से आप आइए -  aarambhanushree576@gmail.com rasprabha@gmail.com और जुड़िये हमारे ब्लॉग  https://aarambhanushree. blogspot.com/ से

तमसो मा ज्योतिर्गमय

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  शिक्षक दिवस पर सम्मान समारोह मे मुख्य अतिथि  जिले के जिलाधीश श्रीमती प्रज्ञा निवासन को आमंत्रित किया गया।नियत समय पर कार्यक्रम का आरंभ संचालक महोदय के औपचारिक भाषण से किया गया।समारोह में उपस्थित देश के भविष्य गढ़ने वाले शिक्षकों के प्रति सम्मान प्रकट करने के तत्पश्चात उत्कृष्ट शिक्षकों का बारी-बारी से अतिथि महोदया द्वारा उन्हें प्रशंसनीय पत्र,श्रीफल और शाल ओढ़कर सम्मानित किया जाने लगा।तभी मंच की ओर आती बुजुर्ग महिला शिक्षिका को देख अतिथि महोदया ने आगे बढ़कर उनके चरणस्पर्श किए तो आश्चर्यमिश्रित नेत्रों से चश्मा ठीक करते हुये पहचानने की कोशिश करने लगी।उनका हाथ पकड़ अपनी कुर्सी पर बिठाया और उन्हें याद दिलाते हुये कहा, 'मुझे पहचाना नही सुषमिता मेडम!  आप मेरी विज्ञान की टीचर और मैं आपकी इण्टर सरकारी स्कूल  की छात्रा...प्रज्ञा।पीछे से तीसरी पंक्ति में बैठती थी...!' हतप्रद सभी को अपनी ओर देख सुष्मिता मेडम सकपका गई।  सभी के सामने इस तरह उनका सम्मान करना..एकटक निहारते हुये सुषमिता मेडम ने दिमाग पर जोर लगाकर याद करने की असफल कोशिश में जैसे कुछ याद आते ही ऑखों में चमक आ गई।  'अच्छा त

जीवन ज्ञान

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    मेरे लिए मेरी मां से बड़ी शिक्षक कोई दूसरा नहीं है, क्योंकि शिक्षक से बड़ा कोई नहीं ये भी मां ने ही सिखाया है। इसलिए शिक्षक दिवस पर कविता जो एक सच्चे शिक्षक को समर्पित है, भेज रही हूं। जब अजन्मी थी, जाना था तुमसे मैंने, किसी भी रूप में आऊंगी, तुम्हारा ममत्व भरपूर पाऊंगी। याद है मुझे एक बार सर ने मुझे, क्लास में डांटा था,  तुमने ही तो सिखाया था, शिक्षक का स्थान सबसे पहले है, भगवान से भी पहले, उनकी सुनो। जब समझ आया लड़की हूं, तुमने ही सिखलाया था, मान संभालना। स्वाभिमान के साथ जीना। ब्याह के समय भी तुमने ही तो, ये सिखाया था,  ये घर तो तुम्हारा अपना है, उस घर को अपनाना है। आज भी जब तुम साथ नहीं हो, तुमसे ही सिखती हूं,  तुमने जैसे विषम परिस्थितियों में सब संभाला, मुझे भी संभालना है, अपने को, अपनों को - अपनी सम-विषम परिस्थितियों को। पता है मुझे, तुम मेरी वो गुरु हो जिसने, मुझे किताबी ज्ञान के साथ-साथ, जीवन ज्ञान भी दिया है। स्नेह स्मिता (मीनू)

निबंध लेखन( गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः)

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  गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म  तस्मै श्री गुरवे नमः  " जन्म देने वालो से अच्छी शिक्षा देने वालो को अधिक सम्मान देना चाइए: क्योंकि उन्होंने तो बस जन्म दिया है पर उन्होंने हमें जीना सिखाया है " -----      ( अरस्तू ) अरस्तू  की इन पंक्तिओ से गुरु का महत्व तो पूर्णतः स्पष्ट हो गया है। प्राचीन काल  से गुरु और उनका आशीर्वाद, भारतीय परंपरा और  संस्कृति  का अभिन्न अंग है। चाहे  बौद्ध धर्म के गौतम बुद्ध  हो,  जैन धर्म के महावीर  या कौरवों या पांडवो के गुरु       द्रोणाचार्य        । ।एक गुरु मानव के शरीर का अभिन्न अंग है           अगर वह अंग नहीं तो मानव नहीं।। एक गुरु में  ब्रम्हा, विष्णु  और  महेश (शिव)  का समावेश है । यानी की अगर हम गुरु को पूजे,सेवा करे , तो साक्षात तीनों लोको के देवता को पूज रहे है। वर्तमान,अतीत में हर  सफल व्यक्ति के पीछे  गुरु ने राह दिखाई है। चाहे वो  राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के गुरु गोपाल   कृष्ण गोखले  हो। या रामचरित मानस के रचियता  तुलसीदास के गुरु रामबोला  । तो क्या ये सब हमें ये स्पष्ट करता है कि  गुरु बिन