व्यक्तित्व मेरे पिता का
बहुमुखी व्यक्तित्व के भंडार हो तुम,
साहित्य के श्रेष्ठतम श्रृंगार हो तुम ,
तुम जो हो, हम थाह तक पाए नहीं ,
क्या नहीं हो , यह भी समझ पाये नहीं ।।
आपका जिस क्षेत्र में आगमन हुआ ,
झांकना भी उस क्षेत्र में बांकपन हुआ
व्यक्ति क्या, अपरिमित,
शक्ति के आगार हो तुम
बहुमुखी व्यक्तित्व के भंडार हो तुम।।
जो सिखाया था तुमने सबको ,
वह सभी के आदर्श गुरु हो तुम।।
हम सबको जो सिखाये थे
जीवनोपयोगी नीति, सूक्ति परक
श्लोक, छोटे छोटे वैदिक मंत्र
हम सब की खुशियों के ,
आज वही बने हैं सिद्धि- यंत्र
इसीलिए बस इसीलिए....
इतना ही जाना है , मेरे लिए तो सर्वश्रेष्ठ ,
कोई और हो नही हो सकता ,
बसतुम, बस तुम
बस तुम ही हो , और रहोगे श्रेष्ठ,
मेरे पापा तुम रहते हो मेरे दिल मे
हर उपलब्धि पर याद बहुत आते हो ,
अपने ज्ञान ध्यान , औ वैदिक संस्कारों से।
हम छः भाई बहनों को , श्रेष्ठ संस्कारित कर,
ऊँचा व्यक्तित्व बनाने वाले बस तुम ,बस तुम
बस तुम ही हो.......
अब ईश्वर अवसर है वह लाया
जिसका रहता था तुमको ,
बेसब्री से इन्तज़ार
जब, तुम्हारे सब बच्चे, और
हम सबके बच्चे भी ,
उत्कृष्टता प्रमाणित करते हैं
सब यादें समर्पित करते, हैं ।
आशीष भी चाहते हैं..
किन्तु , किन्तु न कुछ कह पाते हैं,।
बस इतना ही हम सबने जाना ,,
माना है, समझा है, पहचाना है,
मेरे पापा का गर्वित,ऊँचा व्यक्तित्व
अतुलनीय,है अद्भुत और निराला है
सागर से भी गहरा है ,
औ आसमान से ऊँचा है,
तुम अनुपम हो, अनमोल हो,,
सब कहते हैं पापा मुझमें
तुम्हारा ही रूप झलकता
कभी लेखनी से दिखता
और कभी अध्यापन झलकाता
जीवन मे अब तक जो भी पाया
योगदान तुम्हारा ही था ।
अप्रतिम है, अनमोल,है अद्वितीय
है तुम्हारा व्यक्तित्व जग कहता है,
हम नही सारा जग कहता है।
बहुत बढ़िया!🙏💐
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार प्रिय सखी अनुपमा जी
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