पाजेब


 

पाजेब
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अनु श्री: 🍁🍁🍁🍁🍁
*प्रकृति की पाजेब*
प्रकृति ने पहने हैं
झरनों के गहने
सुगंधित पुष्पों के पैरहन
हवाओं की बांँधी है पाजेब
और जीवन तान छेड़
अपने सभी सहचरों संग
हो रही मस्त मगन
इस लय में लीन है
धारिणी का कण-कण।
इनके बिना ज़िंदगी
बेजान मृत है
प्रकृति के साथ
खिलवाड़ करने वाले
भोग विलास के ठेकेदार
अपनी ही सांँसों को
गिरवी रख कर
चल रहे हैं उस पथ पर
बना रहे खुद को
कंक्रीट का बीहड़
जबसे प्रकृति से
मानव की ठनी है
इंसानों की जां पर बनी है।
"शुभम भवतु "का
आशीर्वाद देती हुई प्रकृति
किस प्रेम से दोनों हाथों से
अपने अनमोल खजाने
हम पर लुटा रही है
हमें हष्ट- पुष्ट तंदुरुस्त,
जीवंत बना रही ।
वहीं लोलुप, स्वार्थी
मानव को देखो
प्रकृति की गोद उजाड़
अपनी ही ‌सांँसें
उखाड़ रहा है
जीवनदायिनी प्रकृति के
आंचल को
कर रहा तार-तार
अपने लिए बना रहा
जीवन दुश्वार।
सीखना होगा मानव को
प्रकृति के संग रहना
मर्यादित विशेष
वरना उसके भी अवशेष
नहीं रह जाएंगे शेष।
@अनुपमा अनुश्री
पाजेब पहनी है, कोई बेड़ियाँ नही पहनी ।
चल पड़ूंगी खनकती पाजेब के संग,
रुनझुन रुनझुन की लय के साथ ।
हाँ है तो नाजुक सी पाजेब,
पर मैं नही ।
मै कठोरता से रखूंगी पग पग फूंक फूंक ।
मुझे यकीं ही नही, तुम पर ।
कोमलांगी समझ कुचल न सकोगे ,
न मुझे, न मेरे इरादों को और न ही मेरे ख्वाबों को ।
मेरे पाजेब तो बस एक गहना है,
दरअसल जीवन की मनहूसियत को दबाने
मैंने इसे पहना है ।
मेरी चाल के संग संग चलती है
और एहसास कराती है,
कि कोई तो है मेरे साथ
जो कदमताल कर रहा है, मेरे साथ
वह भी बड़ी रूमानियत के साथ
रुनझुन रुनझुन
छुन छुन छुन छुन ।
बजती है पैरों मे जब ये पाजेब,
लगता है रंगीन सी हो गई है,
जीवन संगीत सी हो गई है,
मेरी जिंदगी और,
मेरी दुनिया भी ।
बिन्दु त्रिपाठी
भोपाल
श्रीमती उषा चतुर्वेदी भोपाल
चुन्नी की शादी
दादी- दादी कहती मुन्नी दौड़ी आयी
दादी मेरी बात सुनो कान पास में लाओ।
मुन्नी कान में फुसफुस करती बात समझ न आयी।
जरा जोर से बोलो मुन्नी नहीं मशीन लगायी।
कोई सुन लेगा दादी बात राज की लायी।
चुन्नी की हो रही सगाई लहंगा *चुनरी पाजेब आयी* ।
*पहन पाजेब पैर में अपने* चुन्नी खेल रही है।
छुन -छुन घुंघरू की आवाजे मुझको लगती प्यारी।
मेरा ब्याह करा दो दादी मिल जाए *पाजेब घुंघरू वाली* ।
चुन्नी का ब्याह कैसे होगा अभी बहुत है छोटी
दादी ने डंडा फटकारा पहुँच गई चुन्नी के आँगन।
चुन्नी का ब्याह कौन कर रहा वह तो आए आगे।
*बाल विवाह* करना है खोटी
समझे ना लोग लुगाई।
दादी अब तो तुम ही बताओ कैसे तोड़े सगाई।
चुन्नी जब बालिग हो जाए तभी करोगे शादी।
जो गुड़िया का ब्याह रचा रही उसका ब्याह रचा ओ
कुछ तो कर लो लाज शर्म उसको खूब पढ़ाओ।
कच्चा घड़ा अभी है पानी मत भर देना।
फूट जाएगा कच्चा घड़ा फिर तुम मत रोना।
पाजेब
गहनों में मैं बनकर आती ,जोड़ी सदा साथ रहती ,
छम छम करती साजन के , मन को बहुत लुभाती ।
हर नारी का श्रृंगार हूँ, मैं रुनझुन पाजेब कहलाती हूँ ,।।
नई ब्याहता बन जब छत पर मैं जाती हूँ,
अपनी छन छन की आहट से साजन के दिल में,।
मधुर मिलन के तार बजा कर उनके दिल झंकृत कर जाती हूँ ।
रंग बिरंगें नग कुंदन से, मैं हर दम सदा सजी रहती ,
साजन से न मिल पाने पर,मैं ही दोषी ठहराई जाती हूँ ।
,"पायल मोरी बजनी "कह,कर सजना को तरसाती हूँ ।।
!!!साधना मिश्रा !!!
जब भी देखूँ
उसे आते हुए
उसकी ओर
मुड़ जाता हूँ मैं ।
हौले से गुजरे
जब वो नज़दीक से
पाजेब सा बंध
जाता हूँ मैं ।।
दिल के तार
बज उठते हैं
जब वो देख लेती है,
घुँघरू हूँ उसकी
पाजेब का ।
हर मुस्कान पे
खनक जाता हूँ मैं ।।
हौलेसे गुजरे
जब वो नज़दीक से
पाजेब सा बंध
जाता हूँ मैं …
डॉ. नीलिमा दुबे
बैंगलुरु, कर्नाटक
तिनका तलाशता था मैं और मिल गया साहिल
तेरी पाजेब की रूनझुन में खो गया मेरा दिल
रात रहती नहीं हमेशा, कभी तो होती है सहर
मुझको मिल गई रोशनी तेरे नूर में हुआ गाफिल
तू सोचती है कि मर जाऊंगा मैं तेरे इंतजार में
मैं जी रहा था कहां अब तक ओ मेरे कातिल
मेरी तनहाई टूटी, जलसा सा बन गया ये जहां
अपनी महफ़िल में जो तूने किया मुझको शामिल
मेरे हालत वक्त का फेर हैं गलत न हो फहम
गमों को दौर बीता ये दर्द तो है रक्स-ए-बिस्मिल
आशीष जैन

टिप्पणियाँ

  1. मेरे हालत वक्त का फेर हैं गलत न हो फहम
    गमों को दौर बीता ये दर्द तो है रक्स-ए-बिस्मिल,,,,।बहुत सुंदर रचना,
    ,,,,

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