सुबह


 


सुबह से रात तक के सफ़र में, सुबह की बात जितने लोगों की कलम ने की, उसमें किसे भूलूँ, किसे याद करूँ जैसी हालत है । तो आज मैं सबका चयन करती हूँ, सिर्फ एक बेमिसाल रचना को छोड़कर, जो विषय से अलग है ।
अनुश्री जी (वह तस्वीर ब्लॉग पर लगेगी),शेफालिका जी,आर के तिवारी जी,निरुपमा खरे जी, बिंदु त्रिपाठी जी,उषा चतुर्वेदी जी,मधुलिका सक्सेना जी,रेखा भटनागर जी, साधना मिश्रा जी . . . सबको
बधाई
भोर की आहट
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मन में है उल्लास भरा ,
नयी सुबह होने को है ।
दिखीं गई आशा कि किरण ,
धुँधलका छट जाने को है ॥
मिट्टी पानी हवा धूप की ,
खाद मिली है प्रकृति को ।
खिल उठेगी आज धरा भी ,
सुवासित हो तन मन से ।
उल्लासित हो चले नर नारी ,
स्वच्छंद बने उड़ते फिरते ।
नवसृजन की आस लिये ,
बढ़े लक्ष्य की ओर चले ।
तम के बाद छाया उजास,
निशा गयी , आ गई भोर !
बंद दरवाज़ों से पड़े निकल ,
मन में लिये आशा की डोर ।
शेफालिका श्रीवास्तव
भोपाल
मतङ्गकेराम
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"सुबह" की ब्रम्ह बेला है
राम का नाम हो जाये
मिले जो भी सुधीजन सबसे
जै श्री राम हो जाये
राम का नाम जपने से
जरूरी राम को पाना
राम को पाने का मतलब
हृदय सियाराम बस जाएं
हृदय श्री राम बस जाएं
रोम में राम,रम जाएं
रगों में राम ही दौड़े
स्वांस में राम को पाएं
कर्म में राम हो मेरे
धर्म श्री राम हों मेरे
कृपा हो राम की सब पर
राम मय सब कुछ हो जाये
स्वरचित
डॉ आर के मतङ्ग
श्री अयोध्या धाम
नन्हा परिंदा
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एक नन्हा परिंदा अल्लसुबह
मेरे सिरहाने की खिड़की पर चोंच मार कर
जगाता है मुझे और देता है निमंत्रण
कि निकलो अब कमरे की कैद से
और लो आनंद सुहानी भोर का
उसकी मीठी चहचहाहट सुन
समस्त आलस छोड़ आ जाती हूं
नीले आसमां के तले
और देखती हूं उसे
पंख पसारे अनंत आसमान नापते
तेजी से गोता लगा कर नीचे आते
मानों दे रहा है मुझे चुनौती
कि तुम भी उड़ो
पंख पसारो और छू लो हर मंजिल
समय की धारा में जो छूट गए थे पीछे
फिर बुनो उन सपनों को और करो पूरा
बनी धुरी और चाक पर चढ़ा कर
गढ़ दिए बच्चों के सपने
अब फिर एक बार चाक पर रख दो
अपने सपनों की गीली मिट्टी
और गढ़ डालो उन्हें भी
कितना कुछ सिखा जाता है
वो नन्हा-सा परिंदा मुझे
__निरुपमा खरे
अर्से बाद
*****
आज अर्से बाद फिर खिली है मेरे ऑंगन मे धूप,
एक उजली सी सुबह के साथ ।
ऑंखों से अविरल बहते ऑंसुओं ने,
नम कर रखा था, बेरहमी से,
तन को भी और मन को भी ।
आज निकल ही आई
मेरे ऑंगन मे उजली सी धूप,
एक नयी सुबह के साथ ।
शायद ये सुखा सके, ऑंसुओं को
सोख सके नमी को,
हर सके, तन मन के अंधियारे को ।
इक आस सी जगी तो है,
इस खुशनुमा सुबह के साथ
छंटेगा तिमिर और
फैलेगा उजास
इक नयी आस के साथ
धूप से छन कर आती हुई किरण
कुछ कहती सी लग रही है,
शायद यही कहना चाहती है,
इक नयी तमन्ना और नयी ऊर्जा से भरपूर
एक और खुशनुमा सुबह
बस आने को है ।
बिन्दु त्रिपाठी
भोपाल
श्रीमती ऊषा चतुर्वेदी भोपाल
सुबह की दिनचर्या
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सप्तपदी को हो गए पूरे 40 साल
भोर कर्म नहीं बदला गर्मी हो या बरसात
अलार्म की मीठी तान चार बजे जगाती है।
नभ में तारे रहते सदा शशि के साथ।
कुल्ला कर ली अंगड़ाई
सबसे पहले चाय बनायी
शुरू हुआ गृहणी का काम
अब नहीं लेगा थमने का नाम
किसी का लंच किसी की सब्जी
दोनों गैस पर करती जल्दी
दे घड़ी 8:00 बजे का पैगाम
बैठो थोड़ा लो विश्राम
ले मोबाइल सुकून से बैठी
जल्दी पढ़ लूं तो जल्दी लिख लूँ
तभी कानों में आयी आवाज
दीदी लाओ कचरा निकाल
फिर थम गई लेखन रफ्तार
इसीलिए नहीं कविता बन पायी
कहीं-कहीं लय टूट रही है
मन को कष्ट बढ़ा रही है
कैसे लिखूं लिख नहीं पाती
मन के अन्दर उन्हें दोहराती
नहीं आसान गृहणी की राह
नहीं मिल पाते तमगे चार
*नव विहान*
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झाँक रही आस किरण घने घोर बादल से
लहराते आँचल से हरियाले खेतों से
गहराते सागर से .....
कहती है हौले से
गह सको तो
गह लो तुम
गुन सको तो
गुन लो तुम .....
नवल दृष्टि
नवल सृष्टि
नवल आग
नवल राग
नवल वर्ष
नवल हर्ष
चेतना में नवल रंग
मन की मृदंग संग
बाजे चहूँ ओर चंग
गूँजेंगे दिग दिगंत.....
लेकर एक नवल सूर्य
आएगा नव विहान
नए से प्रकाश संग
दमकेगी चार दिशा
बीतेगी घोर निशा
फिर से जागेगी सुबह....
*मधूलिका 'मधुआलोक'*
" सुबह "
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सुबह होते ही ऐसा लगता है
मानो खिलखिला कर सुबह
हमें अपने पास बुला रही है ,
सब अपने अपने कामों में लग जाते हैं
कोई योगा करता है
कोई टहलने चला जाता है
कोई अपने घर में ही
कार्य कर और अपने काम की शुरुआत करता है
चाहे वह आरंभ हो
कहीं की भी लिखने और
चलने लग जाती है कलम
और सोचते-सोचते शाम हो जाती है सुबह का इंतजार होता है
अतिसुन्दर
सुबह होते ही मन मचलने लगता है यह भी कर ले वह भी कर लै रेखांकन भी कर ले
लेखन भी कर ले
जो बच्चे क्लास में आए हैं
उन्हें भी कुछ शिक्षा दे दे
सुबह की बेला में हमने
अपने बच्चों से बनवाया
कितना सुंदर कितना
मधुर कितना अच्छा
हरा भरा फलों से
लदा वृक्ष एप्पल का
प्रोफेसर डॉ रेखा भटनागर
भोपाल

""नई सुबह""
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सुबह सुबह उठ चिड़िया रानी मीठी तान सुनाती है ,
कुछ अपनी मस्ती की धुन में ,जीवन का गान सुनाती है ।
पता नहीं किस बगिया से ,उड़कर में आई मेरे उपवन,
सुबह-सुबह मधुरिम जीवन का कलरव गान सुनाती है ।
नन्ही सी है तो क्या हुआ ,देती है ऊंची, सार्थक शिक्षा ,
सुबह सुबह उठकर के टहलो यह बतलाती छोटी चिड़िया ,
जो बीत गया उसको भूलो, आगे बढ़ने को पंख पसारो,।
तन से छोटी सी चिड़िया उद्देश्य बता कर चली गई ,
नई सुबह नई नई सुबह उम्मीदें लेकर आती है,
बीते दिन के बचे कामों को पूरा करने का मौका दे जाती है ।
सुबह सुबह प्यारी चिड़िया मन महकाकर चली गई।।
!! साधना मिश्रा "लखनवी" !!

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