हिंदी



हिन्दी
मेरे दर्द,मेरी खामोशी,मेरी खुशियों की,
एक सहज भाषा है,
जिसे तोतली ज़ुबान के समय से मैंने सुना, फिर बोलना सीखा...

"प्रथम रश्मि का आना रंगिणि"
"शरचाप शरासन साध मुझे ..."
"कोशिश करनेवालों की ..."
जैसी रचनाओं में मैंने उसे गर्व से दोहराया ।

पंडित नरेंद्र शर्मा जी के गीतों में सुनकर गौरवान्वित हुई 
"ज्योति कलश छलके ..."

अपनी माँ सरस्वती प्रसाद की पंक्तियों में अस्तित्व पाया,
"रास्ते थे तिमिरमय, नहीं सूझता था हाथ भी,
रौशनी तो दूर थी,कोई था न पथ में साथ भी,
अब मशालें क्यों जलीं, जब शेष हो गई रात है !"

दूसरी भाषाओं  का अर्थ भी अपनी ही भाषा में सहजता से डूबकर समझ पाई हूं। - 

अपने देश का नाम,उसकी मिट्टी,उसकी नदियाँ, उसके पर्वत,उसकी भाषा ... ज़िन्दगी है, बाकी सबकुछ - कुछ और सीखने,जानने का मार्ग है, रक्त,पानी,नमक का संबंध तो हिन्दी से ही है  ।

रश्मि प्रभा

इसी के साथ आज का शुभारंभ करती हूँ, आरंभ के मंच से शंखनाद करती हूँ -  

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