निबंध लेखन( गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः)


 




गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः

गुरुर्देवो महेश्वरः

गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म 

तस्मै श्री गुरवे नमः 

"जन्म देने वालो से अच्छी शिक्षा देने वालो को अधिक सम्मान देना चाइए: क्योंकि उन्होंने तो बस जन्म दिया है पर उन्होंने हमें जीना सिखाया है"-----      (अरस्तू)

अरस्तू की इन पंक्तिओ से गुरु का महत्व तो पूर्णतः स्पष्ट हो गया है।

प्राचीन काल से गुरु और उनका आशीर्वाद, भारतीय परंपरा और संस्कृति का अभिन्न अंग है।
चाहे बौद्ध धर्म के गौतम बुद्ध हो, जैन धर्म के महावीर या कौरवों या पांडवो के गुरु     द्रोणाचार्य 

     ।।एक गुरु मानव के शरीर का अभिन्न अंग है
          अगर वह अंग नहीं तो मानव नहीं।।

एक गुरु में ब्रम्हा, विष्णु और महेश (शिव) का समावेश है । यानी की अगर हम गुरु को पूजे,सेवा करे , तो साक्षात तीनों लोको के देवता को पूज रहे है।

वर्तमान,अतीत में हर  सफल व्यक्ति के पीछे  गुरु ने राह दिखाई है। चाहे वो राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के गुरु गोपाल कृष्ण गोखले हो। या रामचरित मानस के रचियता तुलसीदास के गुरु रामबोला । तो क्या ये सब हमें ये स्पष्ट करता है कि गुरु बिन जीवन के उच्च शिखर पर चढ़ना असंभव है ?
 
छोटे शब्दों में कहे  तो-- अगर गोपाल कृष्ण गोखले ना होते तो क्या गांधी होते?
अगर रामबोला नहीं होते तो क्या तुलसीदास होते ?
अगर संत रामानंद नहीं होते तो क्या कबीर होते?

।गुरु समान दाता नहीं,
याचक शीष समान |
तीन लोक की सम्पदा,
सो गुरु दीन्ही दान ।।......  (कबीर)

कबीर ने इस श्लोक से गुरु के महत्व को और अधिक स्पष्टता प्रदान करी है।

परन्तु क्या आज हम प्राचीन काल समान गुरु को पूजते है?
आज के समय क्यों जरुरत पड़ी गुरु पूर्णिमा को मनाने की इसलिए की हम गुरुओं का आदर सम्मान करना भूल चुके है?
क्या वर्तमान में हम उनकी शिक्षाओं का पालन करना भूल गए है?

गौतम बुद्ध के अनुसार--
बुद्ध की शिक्षाओं का सार है- शील, समाधि और प्रज्ञा। इतना ही नहीं, शिक्षाचिकित्सा और आजीविका के क्षेत्र में भी वे समानता के पक्षधर थे। ... उनके अनुसार एक मानव का दूसरे मानव के साथ व्यवहार मानवता के आधार पर होना चाहिए, न कि जाति, वर्ण और लिंग आदि के आधार पर।   

आज हम श्री सर्वपल्ली राधा कृष्ण के जन्मदिन के रूप में गुरु पूर्णिमा उत्सव तो आयोजित करते है। परन्तु क्या उनकी बताए हुए मार्ग पर चलते है जैसे उन्होंने कहा था

शिक्षक वह नहीं जो छात्र के दिमाग में तथ्यों को जबरन ठूंसे,बल्कि वास्तविक शिक्षक तो वह है जो उसे आने वाले कल की चुनौतियों के लिए तैयार करें।

परन्तु ये कहना ग़लत होगा, क्योंकि सरकार नई शिक्षा प्रणाली के माध्यम से श्री सर्वपल्ली के विचारो को महत्ता प्रदान कर रही है ।

               

अगर निष्कर्ष निकाल कर कहा जाए तो, गुरु ना होते तो आज वर्तमान भारत ना होता
भारत विश्व गुरु ना होता
भारत की महान और प्राचीन संस्कृति कभी सामने ना आती

स्वामी विवेकानन्द नें कहा है कि  उठो जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य की प्राप्ति ना हो जाए।

ये पंक्ति युवाओं को अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए प्रेरणा प्रदान करती है, गहराई से समझे तो ये प्रेरणा एक गुरु ने पंक्ति के रूप में दी है।।







नाम- शुभम सक्सेना

स्थान- भोपाल (म प्र)

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