तमसो मा ज्योतिर्गमय


 



शिक्षक दिवस पर सम्मान समारोह मे मुख्य अतिथि  जिले के जिलाधीश श्रीमती प्रज्ञा निवासन को आमंत्रित किया गया।नियत समय पर कार्यक्रम का आरंभ संचालक महोदय के औपचारिक भाषण से किया गया।समारोह में उपस्थित देश के भविष्य गढ़ने वाले शिक्षकों के प्रति सम्मान प्रकट करने के तत्पश्चात उत्कृष्ट शिक्षकों का बारी-बारी से अतिथि महोदया द्वारा उन्हें प्रशंसनीय पत्र,श्रीफल और शाल ओढ़कर सम्मानित किया जाने लगा।तभी मंच की ओर आती बुजुर्ग महिला शिक्षिका को देख अतिथि महोदया ने आगे बढ़कर उनके चरणस्पर्श किए तो आश्चर्यमिश्रित नेत्रों से चश्मा ठीक करते हुये पहचानने की कोशिश करने लगी।उनका हाथ पकड़ अपनी कुर्सी पर बिठाया और उन्हें याद दिलाते हुये कहा, 'मुझे पहचाना नही सुषमिता मेडम!  आप मेरी विज्ञान की टीचर और मैं आपकी इण्टर सरकारी स्कूल  की छात्रा...प्रज्ञा।पीछे से तीसरी पंक्ति में बैठती थी...!'
हतप्रद सभी को अपनी ओर देख सुष्मिता मेडम सकपका गई।  सभी के सामने इस तरह उनका सम्मान करना..एकटक निहारते हुये सुषमिता मेडम ने दिमाग पर जोर लगाकर याद करने की असफल कोशिश में जैसे कुछ याद आते ही ऑखों में चमक आ गई।  'अच्छा तुम वही लड़की हो जो हमेशा मेरी डांट खाती रहती थी पर कभी-कभी तो सही होने पर भी अपनी सफाई में कुछ बोलती नही थी।' प्रज्ञा के सिर पर हाथ फेरते हुये जैसे उनकी ऑखें भीग गई। ये अपने विद्यार्थी की सफलता में खुशी के साथ कुछ उसके प्रति किये उपेक्षित व्यवहार में आत्मग्लानि के ऑसू बहने लगे।
जैसे  अतीत का पूरा चलचित्र घूम गया।ये वही लड़की प्रज्ञा पढ़ाई में अपने नाम के विपरीत तो थी ही साथ ही और छात्राओं से अलग-थलग...अन्य छात्राओं की अपेक्षा समय पर नीट-एंड-क्लीन होमवर्क करने पर भी मैं कुछ-ना-कुछ कमी निकाल कर डांट लगा देती..एक दफा तो कक्षा में देर से उपस्थित होने का कारण पूछे बिना ही पूरे टाईम उसे बाहर रखा पर जब बाद में मालुम हुआ खेल के मैदान में खेलते हुये किसी छात्र को ठोकर लग जाने से बेहोश हो गई थी।सब छात्राएँ तो विश्रामकाल समाप्ति का घंटा सुन उसे अकेला छोड़ अपनी-अपनी कक्षाओं भाग गई थी।प्रज्ञा उसे मेडिकल रूम ले गई थी इसलिए...सुनकर अपनी गलती का एहसास हुआ फिर भी मैंने सफाई देते हुये कहा कि उसे बताना चाहिए।...एक के बाद घूमते चलचित्रों में एक दफा अपने किए दुर्व्यवहार की याद कर शर्मिन्दी होने लगी।अकस्मात् शिक्षा अधिकारी द्वारा कक्षाओं में निरीक्षण के दौरान मेरी नजर में होशियार छात्राओं को आगे की दो सीटों पर बैठा दिया और प्रज्ञा को सबसे पीछे बिठा दिया।आनन-फानन में पर सोच-समझकर की गई व्यवस्था पर मुझे ही मुंह की खानी पड़ी। निरीक्षण महोदय द्वारा पूछे गये प्रश्नों के एक-दो जवाब छोड़ सब निरूत्तर थी सिवाय प्रज्ञा को छोड़...!फिर भी मैंने निरूत्तर छात्राओं को अनदेखी कर उसे सख्त हिदायत देते हुआ कि पढ़ाई पर अच्छे-से ध्यान नहीं दोगी  तो इण्टर में ही डब्बा गोल हो जायेगा।सब कुछ जानते हुये भी शांत स्वभाव की प्रज्ञा सिर झुकाए सुनती रहती। वार्षिक परीक्षा फल में प्रथम श्रेणी में पास होने पर रूखे स्वर में बधाई दी थी...और आज इतने साल बाद इस तरह...वही निर्मल मन से आदर भाव...शिक्षक होकर अपनी शिष्या के प्रति किए पक्षपातपूर्ण व्यवहार...अतीत से वर्तमान में सुष्मिता प्रज्ञा की आवाज से लौटी। सीट से उठने का प्रयत्न करती  सुष्मिता के गले में फूलों का हार पहनाकर प्रज्ञा ने चरणवंदन किया। उसका हाथ पकड़ सुष्मिता पश्चात में कुछ कहती कि प्रज्ञा ने हाथ जोड़कर कहा, 'आपकी डांट ने मुझे अपने लक्ष्य पर डटे रहने की सीख दी...अंदर छिपी कमियों को दूर करने की..।'
गुरू-शिष्य परंपरा के प्रति आदर्शभाव सुन भावावेश में निःशब्द सुष्मिता प्रज्ञा को देख, सोचने लगी ...मन का अंधकार छांटने वाला कोई भी हो सकता हैं।


बबीता गुप्ता 
बिलासपुर छत्तीसगढ़ 

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