मेरी दादी




वो कौन सी डोर है 
जो मुझे उनसे बांधती है
जिन्हें मैंने कभी देखा नहीं
सिवाए एक तस्वीर के
जिसमें वो गोद में
अपने नन्हे शिशु को लिए हैं
मेरे पास हैं उनकी निशानी
दो कुछ-कुछ टूटी हुई बिंदियां
जिन पर लिखा है सती
और जो सजती होंगी
कभी उनके माथे पर
और निखारती होंगी
उनका सती सा रूप
जब इन्हें हाथ में लेती हूं
तो उनका होना महसूस करती हूं
एक पिटारा भी है मेरे पास
जिसमें शायद कभी वो रखती होंगी
अपने सुहाग का सामान
आज सजती हैं उसमें मेरी चूड़ियां
और जब रखती हूं उसे अपनी गोद में
तो महसूस करती हूं
एक आशीर्वाद से भरा हाथ
और दो नेह से भरे नयन --





 

टिप्पणियाँ

  1. निरुपमा आपकी लेखनी बेमिसाल है। मुझे तो ये यकीन है कि आपकी दादी जिनको आपने कभी देखा नहीं, आपके साथ आपकी हर कलात्मक गतिविधि का हिस्सा बन कर आपको आशीर्वाद के निर्झर से सिंचित करती हैं।

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