चित्र रचना


 



चित्र हक़ीक़त हो या काल्पनिक, हाथ में कलम है तो कल्पना में हक़ीक़त,हक़ीक़त में कल्पना के शब्द निखर ही जाते हैं ...
आज भी सबों की कलम ने कमाल किया, चयन बड़ा मुश्किल है, पर करना है तो आज के दो रचनाकार हैं -
निरुपमा खरे जी
और विजया रायकवार जी
रश्मि प्रभा
एक था हाथी
रहता हरदम उदास
खुद में खामियां और दूसरों में नजर आती
उसे खूबियां बेशुमार
जब देखता रंग-बिरंगी तितली को
उड़ता फूल-फूल और डाली-डाली
अपने विशाल शरीर को देख भरता एक ठंडी आह
और हो जाता कुछ और उदास
एक दिन तितली आ बैठी उसके पास
सुन कर हाथी की उदासी की वजह
हंसी वो ठठाकर
बोली तुम तो हो इतने भाग्यशाली
दुनिया में सबसे बलशाली
मेरी सुंदरता,मेरा अभिशाप
बचा न पाती मैं खुद को
तुम्हारा न कर पाता कोई बाल बांका
पहचानो और सराहो
अपनी खूबियां
सुन कर हाथी मुस्काया
अब उसके दिल-दिमाग में उड़ रही थीं
रंग बिरंगी तितलियां
बन कर खुशियां हज़ार
मन ही मन वो उड़ रहा था
बादलों के पार
-निरुपमा खरे
संस्कारों की पतली रस्सी पर होता हूं डावाडोल नहीं ,
शरीर बलशाली है पर हौसले कमजोर नहीं,
संयम धारण करके
आगे मैं बढ़ता जाऊं
लक्ष्य तक पहुंचूंगा कैसे
सोच तनिक ना घबराऊंँ
मैं छोटा बालक गज हूँ ,
माता है उस पार
चाहे आए विघ्न बाधाएं
कर संतुलन का आधार
मुझ पर कृपा बरसाओ
हे गगन गंभीर
झट से पहुंचूं माता तक
पाऊं खुशियां
और लाड़ दुलार ।।
*विजया रायकवार

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