2021


 


2021 पर कम पोस्ट आये, जो आये उसमें सबसे प्रभावशाली जो दो रचना मुझे लगी वह क्रम से बिन्दु त्रिपाठी जी और निरुपमा खरे जी की है -
*याद तो आओगे*
नव वर्ष के रूप मे गत वर्ष किया था स्वागत ।
कतरा कतरा बीत गए तुम,
कुछ खुशियाँ कुछ दे कर ग़म ।
पहले से ही जूझ रहे थे, इक वैश्विक महामारी से ।
सोचा था कुछ राहत होगी,
इसी लिए तो झोंक दिया था
खुद को नववर्ष के स्वागत की तैयारी मे ।
पूजा पाठ और जप तप कर के
ईश्वर का आव्हान किया ।
किंचित प्रभु ने सुना और फिर
वैक्सीन ईजाद हुई ।
नव वर्ष का मिला उपहार और
विपदा भी कुछ कम तो हुई पर ,
।कितने अपने ही लोगों को
हमने अब तक खोया है
लेकिन कुछ पाया भी हमने
गत वर्ष की झोली से ।
आजादी का खूब मनाया
हम सब ने अमृत महोत्सव
वैक्सीन के मुफ्त डोज से,
हुए बहुत जन आज सुरक्षित ।
ओलंपिक के मैदानों से,
पदक भी खूब बटोरे ।
नयी शिक्षा नीति भी अपने
उपहारों के खाते मे आई ।
अन्न दाता भी हुआ सुरक्षित,
कृषक कानून जब आए ।
ईश्वर से है यही प्रार्थना
आने वाला नव वर्ष भी
खुशियाँ ले कर आए ।
बिन्दु त्रिपाठी
भोपाल
लो बीत चला एक और साल
देकर खट्टी-मीठी यादें बेशुमार
कल ही तो दीवारों पर सजे थे
न‌ए कैलेण्डर
आज़ उसका आखिरी पन्ना भी
खत्म होने को है
आंखों में पाली थीं क‌ई उम्मीदें
देखे थे जाने कितने सपने
पर ये साल था कुछ अलग
कुछ डराने वाला
कुछ सिखाने वाला
तोड़ गया जाने कितने सपने
जाने कितने घर
अब फिर एक नई उम्मीद है
आने वाले साल से
विगत का भयानक स्वप्न टूटे
और आंखें एक नई
और खूबसूरत दुनिया में खुलें
__ निरुपमा खरे


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