चित्र आधारित रचना
एक चित्र दिया शेफ़ालिका जी ने और भावों का सैलाब उमड़ा, अभिव्यक्तियों ने चित्र को जीवंत किया । आज की रचनाओं में जो दो रचना ब्लॉग पर लेने जा रही हूँ, वह है -
सुविधाओं की हमको दरकार नही,
जी लेते हर हाल मे हम पर
मानी हमने हार नही ।
नही नसीब हो भोजन यदि तो,
पानी ही पी लेते हैं ।
जैसे भी रखता है रखवाला,
बस वैसे ही जी लेते हैं ।
सुबह सबेरे सर पर रख कर,
केवल पानी की दो बोतल ।
चल पड़ते रोजी की तलाश मे,
तभी जलेगा घर मे चूल्हा,
जीते हैं बस इसी आस मे ।
सुख सुविधा की हमको चाह नही,
एक वक्त की रोटी हो बस, दूजे की परवाह नही ।
जंगल की राह पकड़ लेते हैं, सुबह सबेरे हम हर रोज ।
थक हार कर पानी पी कर ।
कुछ पल लेते पेड़ों की ठौर ।
अगले ही क्षण पुनः निकलते,
जंगल से लकड़ी लाने को ।
घर मे नन्हे मुन्ने बच्चों के
भूखे पेट की आग बुझाने को ।
बिन्दु त्रिपाठी
भोपाल
मेहनतकश
माथे पर स्वेद कणों का
श्रृंगार सजाए
वो श्रमिक स्त्री
सुगठित देह और दमकती त्वचा
कितनी खूबसूरत लग रही है
उसे कहां दरकार है
सौंदर्य प्रसाधन की
उसके होंठों की हंसी
और आंखों की चमक
गवाही देती है
उसके आंतरिक आनंद की
कठिन श्रम से उपजा है
ये निर्मल आनंद
भौतिक सुखों की दरकार
उसे कहां
वो तो मस्त मलंग है
अपने आप में संपूर्ण
छोटा-सा संसार उसका
छोटा-सा आशियाना
मन की संतुष्टी
और खुशियों का खजाना
- निरुपमा खरे
👏👏👌✍️ बधाइयांँ🌷🌷
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार
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