लक्ष्मी का आह्वान है


दिवाली की जगमग रौशनी और उलूक ध्वनि -  मिट्टी के तन में चेतना की वर्तिका कंचन सी बनती है और देवालय की उजास हमारे सम्पूर्ण व्यक्तित्व को आलोकित करती है  ... 


प्रेमदीप

यूं तो मिलते हैं दीप
मिट्टी के लाखों इस दुनिया में
यत्र तत्र सर्वत्र
देते हैं खुशियां अपार

जलाए जाते हैं ये
हर खुशी के अवसर पर
नित्य प्रति घर-घर में सायं प्रातः
द्योतक है ये उजाले के
तम को हरते प्रकाश के
दोषों का शमन करती शक्ति के

महसूस किया है मैंने
जलते दीपों के आलोक को
मां की ममतामयी आंखों में
मासूम अबोध बच्चे की
टिमटिमाती आंखों में
गुरु की आशीर्वाद देती
भावों से भरपूर
भावभीनी आंखों में


बागों में खिलखिलाते
चमकते दमकते रंग बिरंगे फूलों में
आकाश से नेह बरसाती
चांदनी की शीतल फुहारों में

रंग बिरंगी चटक रंगों की
ओढनी पहने
सोलह श्रृंगार करती
नवयौवना के मादक सौंदर्य में

सरोवर में स्नान करते
 क्रीडामग्न श्वेत हंसों के मध्य
खिले श्वेत कमलों में

हाथों में आलता लगाए
पुष्पगुच्छ समर्पित करती
अट्टालिकाओं पर चढ़ती उतरती
रुनझुन करती ,दीप जलाती
कामिनी के सौंदर्य में

खिलखिलाते बच्चों की
श्वेत सुंदर दंत पंक्ति में

जल उठते हैं
लाखों दीप मेरे मन में
देखती हूं जबअद्भुत प्रकृति व उसके अनुपम नजारों को
सुनती हूं जब 
उनका मादक संगीत

करती हूं प्रार्थना ईश से
हर ले वह जग का अंधियारा
भर दे घर-घर में उजियारा
मिलजुल हम सब प्रेम भाव से
आओ प्रेम का दीप जलाएं..।

                   डॉ मंजुला पांडेय

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