गुरू ब्रह्म
पांचवी कक्षा की बोर्ड परीक्षा में अस्सी प्रतिशत अंक मिलने की खुशी में ऋचा अपनी मां के साथ मिठाई लिए घर आई। मैंने एक टुकड़ा उसके मुंह में रखते हुए उसे व उसकी मां को बधाई दी।मां की आंखों में खुशी के साथ चिंता भी थी कि अब आगे कैसे होगा ? मैंने मुस्कुराकर उनके कंधे पर हाथ रखा,इसकी लगन और आपकी मेहनत से सब अच्छा ही होगा।
अपने बारह साल के शैक्षणिक कार्य में ऐसे विद्यार्थी मिलना जो शारीरिक अक्षमता के बावजूद लगन के पक्के थे,मुझे भी बहुत कुछ सिखा गए।
कक्षा पांच की ऋचा जिसकी आंखों की रोशनी धीरे - धीरे कम होती जा रही थी,उसे हर शब्द बोल कर लिखाना होता था,या बोर्ड पर बड़े - बड़े अक्षर लिखने पड़ते। कक्षा चार की सोनू, प्यारी सी बच्ची जो सुन और बोल नहीं सकती थी,उसे समझाने के लिए उससे ही इशारों की भाषा सीखी। और कक्षा तीन की अनन्या इतनी ऊर्जावान, एक जगह ना टिकती। उस ऑटिस्टिक बच्ची का विशेष ध्यान रखना होता था।उसे प्रोत्साहित करने के नये - नये तरीके खोजने पड़ते।
उनकी मांओं के चेहरे पर जो स्निग्ध मुस्कान रहती,मुझे अचंभित करती।कितने धैर्य के साथ वे उन्हें संभाल रही थीं।इतनी जद्दोजहद इसलिए कि उनके बच्चे सामान्य बच्चों के साथ पढ़ें। सही मायने में वे मेरी गुरू थीं।
ऊषा भटेले
बहुत खूब बधाइयांँ💐🙏✌️
जवाब देंहटाएं😊🙏
हटाएंअद्भुत🙏🙏
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