शिक्षक दिवस पर


 



कौन है शिक्षक
कहां रहता है शिक्षक
घर में या बाहर
या यत्र तत्र सर्वत्र
सोचता है विद्यार्थी
उठता है प्रश्न उसके मन में
 दरअसल न घर न बाहर 
  वह तो है सर्वत्र

किस-किस को कहो शिक्षक
वह जो चलना फिरना
 उठना बैठना सिखाते हैं
या जो पढ़ना लिखना 
 खेलना कूदना सिखाते हैं
सभी तो है शिक्षक
पर नहीं है शिक्षक मौजूद
केवल इन सब में
वह तो हर क्षण हर पल
है हमारे साथ

विद्यालय जाते समय
हंसते हंसाते दोस्त
सीख देते हैं 
हंसते हंसते जीने की

नील गगन में उड़ते पंछी
उड़ान भरने की
चंदा शीतलता देने की
टिमटिमाते तारे
कभी न बुझने की
बरसते बादल त्याग की 
हरियाली फैलाने की

वृक्ष परोपकार की
उड़ती रंग बिरंगी तितलियां
रंग बिरंगे फूल
सिखाते हैं उमंग से जीना
हमेशा चमकते दमकते रहना

बादलों को चीरती
सूरज की किरणें
कहती है निकल आओ
चीरकर बाधाओं को
होगी विजय

नदिया देती हैं सीख 
निरंतर चलने की तो 
झरना करता बात
संगीतमय जीवन की
कहते हैं पर्वत
डटे रहो बने रहो
अडिग अविचल सदा

पत्तों पर गिरती
ओस की बूंदें
देती हैं सीख
जीवन के क्षण भंगुर
होने की

रात और दिन का
आना जाना बता जाता है
सुख-दुख के अस्थाई होने को
हम सभी चराचर प्राणियों
का भार अपने सीने पर
लेने वाली धरती
देती है सीख
धीरज धरने की

जीवन में घटने वाली
प्रतिकूल घटनाएं
दे जाती हैं सीख
संभल कर चलने की
हमारी खुद की गलतियां
भी सिखा जाती है बहुत कुछ

हर क्षण हर पल
घटता रहता है कुछ न कुछ
हम सभी के जीवन में
 पग पग पर देता है संकेत
रास्ता तय करने के
तरीकों का
मंजिल तक पहुंचने का

यह सभी हैं हमारे शिक्षक
करती हूं इनको बारंबार प्रणाम ।


                    डॉ मंजुला पांडेय

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