ऐसी गुरु परंपरा को शत-शत नमन है,
ऐसी दिव्य चेतना को शत-शत नमन है



जहां ब्रह्मा से भी ऊंचा उनका स्थान है,
एक धर्म एक ही जाति संस्कृति भी एक है,
जहां ऐसे गुरु हैंजिससे देश महान है,
मार्ग है कंंटक भरा और भटकता संसार है,
ज्ञान के सागर हो तुम,प्यार की गागर हो तुम,
हे गुरु...
ईश्वर की दिव्य चेतना के दिव्य पुंज हो तुम,
मेरे भी अंतर्मन का दीप तुम,
तुमको नमन है,शत बार नमन है,


कभी तुम काट के उंगली गिरा देना जमीं पर खूं
कि ये मेरा है या तेरा है बतला दे कभी फिर तूं
ऋषियों और मुनियों की त्याग तपस्या वाली भूमि है ये,
और उनकी परंपरा का विश्व गुरु भारत की भूमि है ये,
इतने पावन थे लोग यहां कल्याण बरसता था यहां
हर घर हर आंगन में ओम ध्वज फहराता था यहां,
लोक के कल्याण में अपनी हड्डियां तक दान की जिसने
ऐसे तपस्वी दधीचि जैसे जाने कितने थे यहां,
कदम कदम पर ऋषियों के आश्रम थे यहां,
बड़े बड़े राजा महाराजा मस्तक झुकाते थे जहां,
जिनके बाल गुपालों की शिक्षा दीक्षा होती थी जहां,
ऐसे गुरुओं की छत्र छाया में भारत पूरे विश्व का सिरमौर था,
इनके आश्रमों में पढ़ने वाले भरत भारत की पहिचान था,
वो कृष्ण का अर्जुन को देने वाला गीता का ज्ञान था,
गुरु विहीन समाज है आज ,
बिगड़ा हुआ हर काज है आज,
शिक्षा पे लाखों खर्च है ,
घर बार बिक रहा आज है
तब भी कोई भरत यहां नहीं निकलता है,
शर्मिष्ठ कोई ध्रुव यहां सितारा नहीं बनता है,
संवेदना से शून्य हुए गुरु शिष्य सा समाज है,
तड़प गर दयानंद सी होगी तो , गुरु भी बृजानंद से होते,
बिगड़ी आज व्यवस्था है,
गुरुवर तुम्हारी शरण हैं हम,
चंहुओर हाहाकार है अज्ञानता से घिरे हैं हम,
फिर से बदले शिक्षा की रीति -नीति घुट रहा है मेरा दम,
कभी था विश्व गुरु भारत ,
जहां ऋषियों सी संतानें थीं,
वहीं आज़ नयी शिक्षा में सबके चेहरे काले हैं,
कहीं जीपों के घोटाले तो कभी चारे के घोटाले हैं,
कहीं कफन के पैसे खा डाले,
कभी बोफोर्स घोटाले हैं,
ये काम बड़ी फुर्ती से इन कीड़ों ने कर डाले हैं,
अरे पनपे हैं इस तरह कि जैसे देश द्रोह ही मजहब है,
यही बांटते मंदिर -मस्जिद ,
यही आज़ का मकसद है,







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