गुरु ब्रह्मा, गुरु विष्णु
समाज की नवचेतना को आकार एवं दिशा देने में शिक्षक की अहम भूमिका होती है। शिक्षक समाज का दर्पण व निर्माण वाहक होता है। शिक्षक वह पुंज है जो अज्ञान के तमस को मिटाकर जीवन में ज्ञान की ज्योति प्रज्वलित करता है। शिक्षक केवल किताबी शिक्षा ही नहीं देता अपितु जिंदगी जीने की कला सिखाने का भी काम करता है। भारत सदैव से ही शिक्षकों की खान रहा है। देश में कई शिक्षक ऐसे हुए जिन्होंने अपनी शिक्षण कला के माध्यम से नगीने तैयार कर अपना गौरव बढ़ाया हैं। भारत में शिक्षक दिवस मनाने की भूमिका कुछ इस तरह बंधी कि स्वतंत्र भारत के पहले उपराष्ट्रपति जब 1962 में राष्ट्रपति बने तब कुछ शिष्यों एवं प्रशंसकों ने उनसे निवेदन किया कि वे उनका जन्मदिन शिक्षक दिवस के रूप में मनाना चाहते हैं। तब डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने कहा- 'मेरे जन्मदिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाने से मैं अपने आप को गौरवान्वित महसूस करूंगा।' तभी से 5 सितंबर को 'शिक्षक दिवस' के रूप में मनाया जाने लगा।
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की मान्यता थी कि यदि सही तरीके से शिक्षा दी जाए तो समाज की अनेक बुराइयों को मिटाया जा सकता है। भारत ही नहीं बल्कि विश्व में भी अलग-अलग दिन शिक्षक दिवस मनाया जाता है। यदि प्राचीन समय की बात की जाये तो शिक्षक के आश्रम में रहकर ही राजकुमार अपना जीवन विकसाते थे। आश्रम में ही उनकी शिक्षा-दीक्षा संपन्न होती थी। हमारे वेद-ग्रंथों में शिक्षक को साक्षात ब्रह्मा, विष्णु व महेश की संज्ञा दी गई है। शिक्षक समाज की धुरी है जिसके मार्गदर्शन में देश का निर्माण करने वाला भविष्य सुशिक्षित व प्रशिक्षित होता है। नरेंद्र को स्वामी विवेकानंद बनाने वाले व शिवा (शंभू) को छत्रपति शिवाजी बनाने वाले शिक्षक स्वामी रामकृष्ण परमहंस व समर्थ गुरु रामदास ही थे। चाणक्य जैसे शिक्षक के आक्रोश ने चन्द्रगुप्त मौर्य का निर्माण कर घनानंद के अहंकार का मर्दन कर दिया था।
दौर बदलने के साथ शिक्षक के रंग-रूप, रहन-सहन व वेशभूषा में काफी बदलाव देखने को मिला है। पहले शिक्षक आश्रम में वैदिक शिक्षा देते थे, तो अब शिक्षक आधुनिक शिक्षा कक्षा कक्ष में देने लगे हैं। गुरु-दक्षिणा की जगह हर महीने फीस दी जाने लगी है। शिक्षकों के नाम भी अब 'टीचर' व 'सर' हो गये हैं। काफी कुछ बदलाव शिक्षक के आचरण में देखने को मिल रहा है। बाजारवाद के प्रलोभन ने शिक्षक की छवि को भी चोटिल करने का प्रयास किया है। धनलोलुपता और चकाचौंध ने शिक्षक को सम्मोहित किया है। कुटिया में दी जाने वाली शिक्षा अब बड़े-बड़े बिल्डिंग के वतानुकूलित कमरों में दी जाने लगी है। शिक्षक के रूप में शिक्षा का सौदा करने वाले सौदागर पनपने लग गये हैं। स्कूल सीखने की जगह न होकर मोल भाव के किराना स्टोर में परिवर्तित हो चुके हैं। पैसे देकर मनचाही डिग्री खरीदी जा सकती है। ऐसे संक्रमण काल में शिक्षक की सही पहचान धूमिल होती जा रही है। लोगों की गलत अवधारणा यह कहते पायी गई कि शिक्षक कौन बनता है? शिक्षक जैसे महत्वपूर्ण इकाई को काल का ग्रास लग गया है। विगत सालों में घटित कुछ घटनाओं ने शिक्षक के चरित्र पर प्रश्नचिन्ह लगाये हैं। दरअसल, ऐसे लोगों को शिक्षक कहना शिक्षक का अपमान करना ही होगा। यह कथित शिक्षक के वेश में वे दलाल हैं जो शिक्षा का कारोबार करके गुनाह को अंजाम देते है। ऐसे लोग शिक्षक कहलाने के कतई ही हकदार नहीं है।
बिलकुल ऐसी बात भी नहीं है कि अच्छे शिक्षक खत्म हो गये हैं। आज भी कई ऐसे शिक्षक हैं जो सेवानिवृत्ति के बाद भी स्कूलों में निःशुल्क शिक्षा दे रहे हैं। सुदूर इलाकों में जाकर बालपीढ़ी को शिक्षित करने का बीड़ा उठाये हुए हैं। भारत में ऐसे आदर्श व प्रेरणादायी शिक्षकों की सूची काफी लंबी है। यह सब वे शिक्षा के कुलदीपक है जो जग को अपनी रोशनी से रोशन कर रहे हैं। ऐसे शिक्षक ही वास्तविक मायनों में सम्मान के असल हकदार है। इनके लिए शिक्षक होने का अर्थ जीवन की अंतिम सांस तक ज्ञान की ज्योति जलाये रखना है। ऐसे महान शिक्षकों को याद करने का खास दिन 5 सितंबर है। यह हमारे देश की विडम्बना है कि मनुष्य को गढ़ने वाले पेशे और पद का आकलन उस ढंग से नहीं किया जाता, जितना पदार्थों को आकृति देने वाले पेशों को। आज शिक्षक दिवस पर स्वीकारने योग्य तथ्य यही है कि शिक्षक संस्कृति के उस तंतु को जोड़े रखने के लिए आगे आयें, जिसके बल पर राष्ट्र को चरित्रवान व्यक्तित्व दिये जा सके। स्वयं को मात्र ट्यूटर और टीचर की भूमिका में ही कैद न करें, तो अच्छा होगा और उस महान आत्मा के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि भी यही होगी कि उनके विचारों को आत्मसात करते हुए शिक्षक राष्ट्र की महत्ता समझें, जिसमें उन्होंने कहा था- ‘अध्यापन वृत्ति को व्यापार ने निम्न स्तर पर नहीं उतारना चाहिए। यह तो एक मिशन है। अध्यापकों का कर्तव्य है कि वे अपने शिष्यों को लोकतंत्र के सच्चे नागरिक बनायें।’
- देवेंद्रराज सुथार
स्वतंत्र लेखक व साहित्यकार।
बहुत बढ़िया। बने रहिए ब्लाग के साथ✌️🙏✍️💐
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