वक्त


 



 गुरूर में खोकर बंदे
खुद को खुदा माने,
सबक सिखाता है वक्त
तू क्यों न पहचाने,
समय सा गुरु नहीं है कोई।
 
आज है जो-जो ये तेरा,
रहेगा कल न वो तेरा,
वक्त का पहिया घूमेगा ये जब,
उलट जायेगा सब  बेढब,
डूब जायेंगे महल औ’ चौबारे,
जलेंगे स्वप्न तेरे सारे,
अंत का शुरू नहीं है कोई।
समय सा गुरु नहीं है कोई।
 
क्षणभंगुर है तेरी काया,
नश्वर तेरी सारी माया,
मोह में खोकर क्या जीना,
आज को कल है हो जाना,
जो आया उसको जाना है,
यहां पर अमर नहीं है कोई।
समय सा गुरु नहीं है कोई।
 
सोने वाला खोता कमबख्त,
जागने का है न कोई वक्त,
नींद है रात्रि का प्रलय,
जागने पर ही होती सुबह,
जागने वाले की ही जीत,
जगत में जय न और कोई।
समय सा गुरु नहीं है कोई।
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आशीष जैन “देवल”

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