ज्ञान - उम्र से अलग


 

 ज्ञान पाने की कोई उम्र नहीं होती है और इस सहज तथा गूढ़ सत्य को जानने के लिए जन्माष्टमी का दिन तो सर्वथा उपयुक्त है क्योंकि कृष्ण का जन्म स्वयं में ज्ञानोदय का प्रतीक है।
नवजात कृष्ण की लीलाओं को गोकुल, वृंदावन का मंच देने हेतु  मां देवकी का पुत्रत्याग तो पिता वासुदेव द्वारा सामयिक निर्देशों का पालन, पुत्र को नंदलाल का नाम देने के लिए मित्र नंद के घर की दिशा में प्रस्थान, प्रहरियों का सो जाना, कारावास के द्वारों का खुलना, उन्हें जाने के लिए यमुना का मार्ग बनना, विष्णु अवतार के दर्शनों का सौभाग्य सुख पाने के लिए शेषनाग का बाल कृष्ण को वर्षा से रक्षा के मिस छत्र बनकर छा जाना - सब ज्ञान प्राप्त करने के निमित्त ही बने पंथ हैं।
प्रकृति का कोई भी अवयव ऐसा नहीं जो गुरु की भूमिका में नहीं उतरता और नटनागर पाठशाला की तो बात ही पृथक है, उसने तो गोकुल, ब्रज के वासियों को प्रेम के ढाई अक्षरों का पाठ पढ़ाकर पंडित ही बना डाला।
अलौकिक गुरु ही तो हैं श्रीकृष्ण जिन्होंने संपूर्ण विश्व को गीता का कालजयी दर्शन दिया है जिसकी सांदर्भिकता को शस्त्र नहीं काट सकता, अग्नि जला नहीं सकती, जल नहीं गला सकता, वायु सुखा नहीं सकती।
आपसबने भी गुरु की शरण गही है, गुरु की भूमिका में भी उतरे हैं और गुरु पूर्णिमा सा, गुरुस्मृति में मनाया जानेवाला पर्व बस आने  को है - शिक्षक दिवस...तो आइए इसे विशेष बनाते हैं... लेखन की  प्रतियोगिता आयोजित करते हैं। विधा आप जो भी चुनें - काव्य, निबंध, रेखाचित्र, कथा, संवाद ... पसंद आपकी... ख्याल आपका, तो प्रतिभागी बनिए और गुरु ब्रह्म विषय के आलोक में सब अपनी अपनी कलम उठाइए।
रचना भेजने की अंतिम तिथि है - ३ सितंबर २०२१, प्रेषित कीजिए नीचे दिए गए पहचान-सूत्र पर।

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